बुधवार, 26 जनवरी 2011

समय

मैं उड़ जाऊंगा,
खुले आसमान में 
ठंडी हवाओ में 
गीली मिटटी की सौंधी ख़ुशबू लिए
हाथों में नसीब लिए 
नहीं आऊंगा हाथ 
उड़ जाऊंगा.


रुकना अब मेरे बस में नहीं
थमना अब मेरे हाथ नहीं, 
दुनिया को भूल 
भावनाओ को छोड़ 
मोह-माया को त्याग 
नहीं रुकुंगा 
एक चेतना है मेरी 
एक वेदना है मेरी
अनंत कल के अंतहीन पंजो से परे 
चलता जाऊंगा.............


मेरे आंसू

हर इमानदार मुस्कान के पीछे, 
मेरे दो बेईमान आंसू रहते है.  
हर एक पल मेरे खुशमिजाज़  
नैनो की ख़ुशी छिनने को.
हर एक पाया अब , पराया सा लगता है 
हर एक खोया , कुछ रोया सा.
नींद नदारद है नैंनों से 
मुश्किलातों की आबादी  लगातार बढ़ रही है.
समझ पर डर का पर्दा डाले 
अब बरबस रो पड़ना, मनो एक खेल सा लगता है .
अचानक उठ बैठना , खोया-खोया सा रहना
बहुत  कुछ कहकर भी न कहना .
क्यों? नहीं था मुझे इस संसार में आने का अधिकार? 
प्रश्नों का उत्तर देते-देते हर बार बीच में 
रुलाई की लहर में डूब जाना ...........................


आज बहुत सुकून से हूँ .....
आज कुछ महसूस नही होता ........
आज सब अच्छा-अच्छा लगता है .........
कंधे बहुत हलके है ....................
आकांक्षाओं में केवल रोना बाकि है.................
आज खुश हूँ दुसरो को रोता देख.........


शायद यही एक नई शुरुआत है ...




दो आंखें

दर्द से भरी, सदियों की जगी 
दो आँखें. 
आँखें, जिन्होंने सालों से कोई दिवाली,
कोई ईद नहीं देखी.
नहीं जानती किस को नाम 
या चेहरे से,
पर जानती है हजारों आँखों को,
जब खरोचों से खून रिसता है,
दर्द से, कोई माँ , बहेन या बेटी 
चीख उठती है
.रोते हुए उस वेदना को पहचान 
अंतहीन पीढ़ा से भरी 
हजारों आँखें 
जो बम के धमाको से लेकर 
बस हादसों तक
सब देख कर भी बस, 
स्तब्ध रहती है. 
ऑर ज्यादा दर्द पे ,
बरबस रो पड़ती है  
जिनमे प्रश्न तो अनेक है पर, 
पूछने की हिम्मत नहीं.
की, कब तक चलेगा .......
ये दरिंदगी का नंगा नाच ?
ऑर कब तक, ज़िन्दगी की कीमत
रहेगी पन्नो का एक बेमानी ढेर ??????????
























रविवार, 5 दिसंबर 2010

रो दिए

मुझे आते देख,
तुम रो दिए......
.
 मुहे तनहा पा,
तुम रो दिए......

मेरी बाहों में होकर भी, टूटकर 
तुम रो दिए......

जब कहा प्यार है तुमसे
तुम रो दिए......

जब पुछा हाल-ऐ-दिल  
तुम रो दिए......

भीड़ में तनहा खड़े 
तुम रो दिए...... 

आज हम खुश थे 
तुम चुप रहे.......

आज कहना था तुमसे बहुत कुछ 
तुम चुप रहे.......

आज जब पुकारा तुम्हे 
तुम न रुके......

सबको बहुत समझाया
तुम न रुके ......

भीड़ थी चारो ऑर
तुम चुप रहे......

जब रोये हम, तडपे, चिल्लाए 
तुम चुप रहे.......

बहुत रोकना चाहा 
तुम चल दिए.........

सोने दो

क्या प्राप्त किया, क्या क्या खोया
कुछ याद नही ,अब सोने दो.
कल कोण हँसा, रोया अब कौन
कुछ नहीं फिकर, अब सोने दो.

रातो की वो उधेड़ बुन, वो तनहा सा विराना मन,
छोडो सब को अब सोने दो.

हर घर में दीपक जलता है, साड़ी रात वो गलत है,
तुम भी बुझा उस दीपक को, करो अँधेरा, सोने दो............

मुझको तुमपे चिल्लाना है, तुमपर पूरा झल्लाना है,
हर कुंठा पर कुंठित होकर 
आ जाओ इधर, अब सोने दो....................

अंधियारों से मिल जाऊ मैं, नहीं पता,  जल जाऊ मैं,
मुझको इसका उत्तर बतला, कर दो संतुष्ट ,अब सोने दो ..............

आखें बोझिल सी लगती है, बिन बात अकेले जगती है,
दे दू क्या इनको आराम ?
समझाओ मुझे अब सोने दो................

हर एक उजाला परख लिया , अब अंधियारे को समझ लिया,
मेरी बुध्धू सी सोच पे हस , मुझे लगा ठहाका सोने दो........................

दिन रात अकेले चलता हूँ , बिन बात तमाशा करता हूँ
हो गया बोहोत थका गया बहुत अब सोने दो...................................